समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /106 जनवरी 2020
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
रविवार : 12.01.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
उमेश महादोषी

01.
क्यों सहूँ
डूबना-उतराना
इस भँवर में
जानता हूँ जब
बटोरकर थोड़ी शक्ति
एक मछली-सी उछाल
तोड़ सकती है आसानी से
यह भंवर जाल!
02.
पानी
सिर से गुजर चुका है
कुत्तों के भौंकने का शोर
दिशाओं को निगल चुका है
मित्रो!
रोशनी की उम्मीद छोडो
जितना बढ़ा सकते हो
अपने नाखूनों को बढ़ाओ
और अंधेरों के जंगल में
घुस जाओ।
| छायाचित्र : रितेश गुप्ता |
बसन्त आई
खुश हुए कुछ भौंरे
पर.....?
फूलों की पंखुड़ियों से
निकलने लगीं लपटें
झुलसने लगे पेड़
04.
गुलेलें तनी थीं
बगुलों की ओर
शिकार/मगर
हो गईं
गौरैयाएँ
- 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004
No comments:
Post a Comment