समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 54 जनवरी 2019
रविवार : 13.01.2019
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श }
वीणा शर्मा वशिष्ठ
01. चाँद
चाँद
छलिया
मन ले गया
आह!
दिन में
वीरान...नितांत...
सूरज सँग
तपन में छोड़ गया...।
02. समर्पण
![]() |
| रेखाचित्र : बी.मोहन नेगी |
रूठना,
तिलमिलाना
क्षण भर का
सदियों सा गुजरना।
मात्र...
अधरों का खिलना,
समर्पण की गवाही!
प्रेम!?
03. अंतिम समय
अंतिम समय में,
मैं,
शैया पर मूक पड़ा,
खिलखिला पड़ा..
क्योंकि...
चाहकर भी ,
मैं,
‘‘मैं-मेरा न ले जा सका....।’’
- 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 079862 49984


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