Sunday, October 21, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 48                  अक्टूबर 2018

रविवार : 21.10.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना शर्मा



01.

घूम रहा है 
समय का पहिया 
अब, चलोगे?
कि, 
यहीं मिलोगे?

02.

करते रहे 
कोशिशें
और छा गए
ऐसे-
हौसलों के हाथों में
शिखर आ गए।

03.

ओढ़े बैठे थे
खुश रंग चादर
धुल गई
ज़रा सी हवा और ..
पहली बारिश 
झूठे मचानों की
कलई खुल गई।

04.

मिले तो ‘वो’ थे
रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 

खूब तड़पाती है 
दिल को जुदाई 
कैसा इन्साफ!
किसी की खता थी ,
किसी ने सजा पाई।

05.

दूर से दिखती है 
व्यवस्था
नई-सी, चाक-चौबंद 
लगाकर गए हैं वो 
कायदे से वायदों के 
रंगीन पैबंद!

  • एच-604, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

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