समकालीन क्षणिका खण्ड-01 अप्रैल 2016
रविवार : 14.05.2017
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित उमेश महादोषी की क्षणिकाएँ।
उमेश महादोषी
01.
कैसा था वह दृश्य...!
किनारे पर नदी के
खींच लाई लाश को नोचते
लड़ते हुए कुत्ते
बीच पुल पर से मैंने देखा-
सांध्य के सूरज ने
अर्ध्य देती नदी को
पहना दी थी उतारकर
अपने गले की माला...
ऐसा था वह दृश्य!
02.
पहचान का क्या...
और अर्थ का भी
क्या करुंगा...!
शब्द होना ही
मेरे लिए
समुन्दर होना है!
03.
नागफनी के जंगल में
उगा है
![]() |
| छायाचित्र : उमेश महादोषी |
यह शहर
क्या इतना काफी नहीं है
इसे समझने के लिए?
04.
अब राजा नहीं रहे भोज
किन्तु तेल पीने की
आदत नहीं गई
गंगू
बार-बार याद आता है!!
- 121, इन्द्रापुरम्, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मोबा. 09458929004


No comments:
Post a Comment